रचनाकार – पं.रामेश्वर दयाल दुबे
भारत जननी एक हृदय हो, भारत जननी एक हृदय हो।
एक राष्ट्रभाषा हिंदी में कोटि-कोटि जनता की जय हो। भारत जननी एक हृदय हो॥
स्नेह-सिक्त मानस की वाणी, गूँजे गिरा यही कल्याणी।
चिर उदार भारत की संस्कृति सदा अभय हो सदा अजय हो। भारत जननी एक हृदय हो॥
मिटे विषमता, सरसे समता, रहे मूल में मीठी ममता।
तमस कालिमा को विदीर्ण कर जन-जन का पथ ज्योतिर्मय हो। भारत जननी एक हृदय हो॥
जाति-धर्म-भाषा विभिन्न स्वर, एक राग हिंदी में सजकर,
झंकृत करें हृदय तंत्री को स्नेह-भाव प्राणों में लय हो। भारत जननी एक हृदय हो॥