संस्थापक

Founder

जन्मः 15.08.1902, निधनः 06.05.1995

पद्म भूषण डॉ. मोटूरि सत्यानारण

हिंदी के अप्रतिम शलाका पुरुष

आंध्र प्रदेश राज्य के कृष्णा जिले के अंतर्गत दोंडपाडु नामक गाँव में 15 अगस्त, 1902 को जन्मे डॉ. मोटूरि सत्यनारायण का संपूर्ण जीवन हिंदीमय था। वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और अखिल भारतीय हिंदी आंदोलन के एक ऐसे अपराजेय सेनानी और दूरदर्शी योजनाकार थे जिन्होंने मन, वचन और कर्म से राष्ट्रीय आकांक्षाओं को पोषित एवं पल्लवित करने के साथ-साथ हिंदी के अखिल भारतीय स्वरूप को मजबूत आधार प्रदान करने के लिए निरंतर कार्य किया। महात्मा गांधी के द्वारा 1918 से हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए किए गए आंदोलन के संदर्भ में मोटूरि सत्यनारायण जी का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। उन्होंने स्वतंत्रता से पूर्व और स्वतंत्रता के बाद हिंदी प्रचार और प्रसार कार्य समर्पित भाव से किया था। वे दक्षिण और उत्तर भारत के मध्य हिंदी के भाषा-सेतु थे।

पद्‍मभूषण डॉ. मोटूरि सत्यनारायण हिदी के राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े एक ऐसे अग्रणी नायक थे जिन्होंने हिंदी के प्रसार-प्रचार और राष्ट्रीय एकता में उसकी बहुआयामी भूमिका को स्थापित करने के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद, श्री जमनालाल बजाज, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, डॉ. गोपाल रेड्डी, आंध्र-केसरी श्री टंगहूरि प्रकाशन पंतुलु इत्यादि राष्ट्रभक्त एवं हिंदी-प्रेमी नेताओं का सहयोग प्राप्त कर उन्होंने गांधीजी का संदेश गाँव-गाँव एवं घर-घर तक पहुँचाया और हिंदी को राष्ट्रीयता की संवाहिका और भारतीय भाषाओं के एकीकरण की मजबूत कड़ी मानकर उसके प्रचार-प्रसार में न केवल अपना संपूर्ण जीवन लगा दिया बल्कि इसके लिए कारागार की सजा भी काटी। सन् 1951 में मोटूरि सत्यनारायण जी ने आगरा में अखिल भारतीय हिंदी परिषद् नामक एक हिंदी शिक्षक-प्रशिक्षण संस्था का आरंभ किया था। डॉ. सत्यनारायण के कुशल निर्देशन में इस परिषद् द्वारा स्थापित अखिल भारतीय हिंदी महाविद्यालय सन् 1960 तक सफलता पूर्वक चला। समय के साथ इस महाविद्यालय का कार्य विस्तार हुआ और इसे अपने समय के अनेक विख्यात हिंदी विद्वानों, मनीषियों और शिक्षाविदों का सान्निध्य मिला। 

कालांतर में भाषा शिक्षण-प्रशिक्षण के अलावा अखिल भारतीय स्तर पर सांस्कृतिक परिवेश में आधुनिक अपेक्षाओं की अभिव्यक्ति को दृष्टिगत करते हुए प्रयोजनमूलक हिंदी का बहुआयामी विस्तार हुआ। इसी क्रम में केंद्र सरकार ने इस महाविद्यालय के संचालन का दायित्व केंद्र सरकार द्वारा सन् 1960 में गठित केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल को सौंप दिया। मंडल का प्रमुख उद्देश्य भारत के संविधान की धारा 351 की मूल भावना के अनुरूप अखिल भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी के शिक्षण-प्रशिक्षण, शैक्षणिक अनुसंधान, बहुआयामी विकास और प्रचार प्रसार से जुड़े कार्यों का संचालन करना निश्चित किया गया। बाद में इसी महाविद्यालय का नामकरण केंद्रीय हिंदी संस्थान के रूप में किया गया। आज का केंद्रीय हिंदी संस्थान वास्तव में डॉ. मोटूरि सत्यनारायण के स्वप्नों का ही मूर्तिमान रूप है। 

डॉ. मोटूरि सत्यनारायण जी कई भाषाओं के ज्ञाता थे। वे अपनी मातृभाषा तेलुगु के साथ तमिल, अंग्रेजी, उर्दू, हिंदी तथा मराठी में समान रूप से दक्षता रखते थे। देशभक्ति, राष्ट्रीय चेतना और राजनीतिक दूरदृष्टि के साथ उनके बहुभाषा ज्ञान ने उनकी भाषा-दृष्टि को सर्वग्राही और समावेशी बनाया। वे समस्त भारतीय भाषाओं के विकास के पक्षधर रहे। 

केंद्रीय हिंदी संस्थान और दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा जैसी संस्थाओं के माध्यम से डॉ. मोटूरि जी ने हिंदी प्रचार-प्रसार एवं विकास कार्य को अखिल भारतीय स्वरूप प्रदान किया। किसी भी भाषा की व्यावहारिक परिधि व्यापक होती है। प्रयोजनमूलक हिंदी के व्यावहारिक पक्ष को उजागर कर मोटूरि जी ने हिंदी की महती सेवा की है। 

पद्‍म भूषण से अलंकृत श्रद्धेय डॉ. मोटूरि सत्यनारायण जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी होने के कारण किसी एक क्षेत्र की परिधि में बँधे नहीं रहे। उनका योगदान भाषा एवं शिक्षण-प्रशिक्षण संबंधी कार्यों को आरंभ करने मात्र तक सीमित नहीं था, बल्कि राष्ट्रीय एकता के निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए हिंदी की ऊर्जा और चेतना जगाते हुए भी वे अन्य क्षेत्रों की समृद्धि में अपना योगदान देते रहे। दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के प्रधान मंत्रित्व के पद को संभालते हुए वे तेलुगु भाषा समिति के प्रधान सचिव तथा केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल आगरा के संस्थापक पुरोधा रहे। इन संस्थाओं से जुड़े प्रशासनिक कार्यों में भी उनका योगदान अप्रतिम रहा। इसके साथ ही मद्रास विधान परिषद तथा राज्य सभा के मनोनीत सदस्य के रूप में भी उनकी सेवाएँ अविस्मरणीय है। 

निस्संदेह पद्‍मभूषण डॉ. मोटूरि सत्यनारायण अपने युग के हिंदी महानायक थे। यह कहना अधिक समीचन होगा कि वे हिंदी की गौरव यात्रा के अपराजेय योद्धा के साथ ही हिंदी के अप्रतिम शलाका पुरुष ही बन गये। 

हिंदी हित में आजीवन समर्पित इस महापुरुष के जीवन आदर्शों और कार्यों से निरंतर प्रेरणा लेते हुए संस्थान हिंदी के बहुआयामी विकास के लिए पूर्ण निष्ठा और समर्पण के साथ कार्य करने के लिए वचनबद्ध है। 

© Central Institute of Hindi, Agra. All Rights Reserved.