विकास यात्रा

केंद्रीय हिंदी संस्थान की स्थापना सन् 1960 में हुई थी। तब से आज तक लगातार मंडल द्वारा निर्धारित लक्ष्यों एवं उद्देश्यों के अनुपालन में संस्थान हिंदी के शैक्षणिक विकास, बहुआयामी अनुसंधान और प्रचार-प्रसार के लिए अपनी गतिविधियों को विस्तार देता रहा है। पाँच दशकों से अधिक लंबी इस विकास-यात्रा के उल्लेखनीय पड़ावों की जानकारी इस खंड में बिंदुवार प्रस्तुत की जा रही है।

भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के मार्गदर्शन में लालकिले में आयोजित अखिल भारतीय संस्कृति सम्मेलन में सर्वसम्मति से हिंदी को प्रशासनिक माध्यम और सामाजिक संस्कृति की संवाहिका के रूप में विकसित करने के लिए एक अखिल भारतीय स्तर की संस्था को स्थापित करने का निश्चय।

  • अखिल भारतीय हिन्दी परिषद् की आगरा की स्थापना।
  • परिषद् द्वारा अखिल भारतीय हिंदी महाविद्यालय की स्थापना।
  • पं. देवदूत विद्यार्थी महाविद्यालय के संचालक और डॉ. सत्येन्द्र प्राचार्य नियुक्त।
  • हिंदीतर भाषा, भाषी राज्यों के हिंदी प्रचारकों के प्रशिक्षण पाठ्यक्रम प्रारम्भ।

अखिल भारतीय हिंदी परिषद् को शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार से आंशिक अनुदान स्वीकृत।

डॉ. कैलाशचन्द्र मिश्र महाविद्यालय के संचालक नियुक्त।

  • श्री एम. सुब्रह्मण्यम महाविद्यालय के संचालक नियुक्त।
  • शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा परिषद् को पूर्ण अनुदान देने की स्वीकृति।

महाविद्यालय के वार्षिक समारोह में राज्य सभा के उपाध्यक्ष श्री एस. बी. कृष्णमूर्ति राव ने अपने अध्यक्षीय भाषण में संस्था को राष्ट्रीय शिक्षा का गुरुकुल बताया और कहा कि देश की शिक्षा व्यवस्था में इसे महत्व मिलना चाहिए।

  • शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा अखिल भारतीय हिंदी शिक्षण महाविद्यालय की आगरा में स्थापना।
  • महाविद्यालय के संचालन के लिए केंद्रीय हिंदी शिक्षण मण्डल का गठन। श्री मोटूरि सत्यनारायण मण्डल के अध्यक्ष मनोनित।

सोसायटीज़ एक्ट में मण्डल का पंजीकरण।

केन्द्रीय हिंदी शिक्षण मण्डल की प्रथम बैठक आयोजित। बैठक में हिंदी शिक्षण प्रवीण, हिंदी शिक्षण पारंगत और हिंदी शिक्षण निष्णात पाठ्यक्रम संचालित करने का निर्णय।

मंडल की प्रबंध परिषद् की बैठक आयोजित। बैठक में विकास समिति का गठन।

  • महाविद्यालय में "हिंदीतर भाषी प्रदेशों में हिंदी सीखने की समस्याएँ" विषय पर संगोष्ठी आयोजित।
  • मण्डल के निर्णयानुसार हिंदी शिक्षण प्रवीण, हिंदी शिक्षण परंगत और हिंदी शिक्षण निष्णात पाठ्यक्रमों का संचालन।
  • छात्रों की वार्षिक पत्रिका "समन्वय" का प्रकाशन प्रारंभ।
  • अर्धवार्षिक शोध पत्रिका "गवेषणा" का प्रकाशन प्रारंभ।

  • महाविद्यालय के प्रथम निदेशक के रूप में डॉ. विनय मोहन शर्मा द्वारा मई, 1962 में कार्यभार ग्रहण।
  • श्री मोटूरि सत्यनारायण का मण्डल के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र। श्री बालकृष्ण राव मण्डल के अध्यक्ष मनोनीत।
  • डॉ. विनय मोहन शर्मा का निदेशक पद से त्यागपत्र।

  • फ़रवरी, 1963 में डॉ. ब्रजेश्वर वर्मा द्वारा महाविद्यालय के निदेशक पद का कार्यभार ग्रहण।
  • अखिल भारतीय हिंदी शिक्षण महाविद्यालय का नाम बदलकर 'केंद्रीय हिंदी संस्थान' किया गया।
  • "सार्वदेशिक हिंदी का भावी रूप" विषय पर संगोष्ठी का आयोजन। संस्थान में अनुसंधान कार्यो का आरंभ।

  • "साहित्य में बाह्म प्रभाव-भारतीय साहित्य के परिप्रेक्ष्य में" विषय पर संगोष्ठी का आयोजन।
  • हिंदी साहित्य, भाषा विज्ञान और शिक्षाशास्त्र से संबंधित विषयों पर प्रसार व्याख्यानों का प्रारंभ।
  • संस्थान के भवन के लिए आगरा में 15 एकड़ भूमि का अधिग्रहण।

हिंदीतर भाषा, भाषी राज्यों के सेवारत हिंदी अध्यापकों के लिए एक मासीय पुनश्चर्या/नवीकरण पाठ्यक्रम शुरू।

  • संस्थान द्वारा शोध कार्यों का प्रकाशन प्रारंभ। "भारतीय भाषाओं का भाषाशास्त्रीय अध्ययन" और "भारतीय साहित्य : तुलनात्मक अध्ययन" छात्रों के लघु शोध प्रबंध प्रकाशित।
  • तमिल, तेलगु, कन्नड़ और मलयालम के प्राथमिक स्तर के छात्रों की पाठ्य पुस्तकें निर्मित।

  • संस्थान में शिक्षाशास्त्र विभाग, शैक्षणिक भाषाविज्ञान विभाग, साहित्य विभाग, अनुसंधान एवं सामग्री निर्माण विभाग और प्रसार विभाग स्थापित।
  • "भाषा शिक्षण में भाषाविज्ञान का योगदान" विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन।

  • संस्थान में विभागों का पुनर्गठन-अनुसंधान एवं प्रसार विभाग, भाषा और शैक्षणिक विभाग, शिक्षाशास्त्र और मनोविज्ञान विभाग एवं साहित्य एवं प्रकाशन विभाग बनाए गए।
  • संस्थान द्वारा किए जा रहे कार्यो की समीक्षा करने के लिए मण्डल द्वारा गठित उच्च स्तरीय समिति द्वारा, जिसके सदस्य प्रो. एस.एम कत्रे, प्रो. बाबूराम सक्सैना और प्रो. आर्येन्द्र शर्मा थे, 6 अगस्त, 1968 को संस्थान का निरीक्षण।
  • संस्थान के कार्यो की प्रशंसा करते हुए समिति ने संस्थान को विश्वविद्यालय की मान्यता देने की संस्तुति।

मंत्रालय द्वारा निम्न योजनाएँ स्वीकृत-

  • हिंदीतर भाषी क्षेत्रों के हिंदी जानने वाले अन्य विषयों के प्रशिक्षित अध्यापकों के लिए एक वर्षीय गहन हिंदी शिक्षण-प्रशिक्षण पाठ्यक्रम।
  • विदेशियों का गहन पाठ्यक्रम के द्वारा शिक्षण-प्रशिक्षण।
  • हिंदी अनुवाद पाठ्यक्रम।
  • भाषा प्रयोगशाला का स्थापना।
  • अखिल भारतीय स्तर पर हिंदी-शिक्षण की समस्याओं के सर्वेक्षण पर कार्य प्रारंभ।

  • दिल्ली केंद्र की स्थापना।
  • गृहमंत्रालय, भारत सरकार की योजना के अंतर्गत राजभाषा विभाग के अधिकारियों के लिए तीन मासीय गहन हिंदी- शिक्षण पाठ्यक्रम का शुभारंभ।
  • विदेशियों के लिए गहन हिंदी शिक्षण पाठ्यक्रम प्रारंभ। दिल्ली में स्थित विदेशी राजदूतावासों के अनुरोध पर विदेशियों के हिंदी शिक्षण के लिए सांध्यकालीन पाठ्यक्रमों का आयोजन।
  • मुख्यालय आगरा में हिंदीतर राज्यों के हिंदी न जानने वाले प्रशिक्षित अध्यापकों के लिए एक वर्षीय गहन हिंदी शिक्षण-प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों का शुभारंभ।
  • गहन हिंदी शिक्षण पाठ्यक्रम के लिए पाठ्यक्रम एवं शिक्षण-सामग्री का निर्माण।
  • आगरा मुख्यालय में ध्वनि विज्ञान एवं भाषाप्रयोगशाला स्थापित करने की कार्य-योजना तैयार।
  • पूर्वांचल के लिए मानक हिंदी शिक्षण के लिए कैसेट्स तैयार।
  • 'संस्थान बुलेटिन (त्रैमासिक) के प्रकाशन का शुभारंभ।
  • मैसूर विश्वविद्यालय की ओर से संस्थान को अनुसंधान केंद्र की मान्यता।

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