केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल का प्रतीक / मुद्रा-चिह्न
हिंदी भाषा को अखिल भारतीय स्वरूप को देश भर में समान स्तर पर लाने और साथ ही हिंदी भाषा शिक्षण को सबल आधार देने के उद्देश्य से पद्मभूषण डॉ. मोटूरि सत्यनारायण और देश के विभिन्न हिंदी प्रेमी भाषा-शिक्षाविदों की पहल पर 19 मार्च, 1960 ई. को भारत सरकार के तत्कालीन ‘शिक्षा एवं समाज कल्याण मंत्रालय’ ने ने जिसे अब शिक्षा मंत्रालय कहा जाता है, एक स्वायत्तशासी संगठन ‘केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल‘ का गठन किया और 1 नवम्बर 1960 को इस संस्थान का लखनऊ में पंजीकरण करवाया गया। मंत्रालय द्वारा ‘केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल’ को आगरा में कार्यरत ‘अखिल भारतीय हिंदी प्रशिक्षण महाविद्यालय’ के संचालन का दायित्व सौंपा गया। 1 जनवरी, 1963 को इस महाविद्यालय का नाम बदल कर ‘केंद्रीय हिंदी शिक्षण महाविद्यालय’ और बाद में 29 अक्टूबर, 1963 को ‘केंद्रीय हिंदी संस्थान’ कर दिया गया।
संस्थान के संचालन के लिए संगठन (केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल) के चार उप निकाय हैं – (1) मंडल (2) शासी परिषद् (3) विद्या सभा (4) वित्त समिति । मंडल के नियमानुसार भारत सरकार के केंद्रीय शिक्षा मंत्री मंडल के पदेन अध्यक्ष होते हैं। अध्यक्ष होदय के प्रतिनिधि के तौर पर मंडल के नियमानुसार उपाध्यक्ष और मुख्य कार्यपालक अधिकारी के तौर पर सचिव / पदेन संस्थान के निदेशक की नियुक्ति की जाती है।
विशेष विवरण के लिए केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल की ‘संस्था ज्ञापन – नियम और उपनियम‘ पुस्तिका देखिए।
मंडल का ध्येय वाक्य – ‘ज्योतित हो जन जन का जीवन’ संस्थान गीत – ‘भारत जननी एक हृदय हो’ ‘संस्थान का दृष्टि पथ’
- हिंदी भाषा के शिक्षकों को प्रशिक्षित करना ।
- हिंदीतर प्रदेशों के हिंदी अध्ययन कर्ताओं की समस्याओं को दूर करना।
- हिंदी शिक्षण में अनुसंधान के लिए अधिक सुविधाएँ उपलब्ध करवाना।
- उच्चतर हिंदी भाषा, साहित्य और अन्य भारतीय भाषाओं के साथ हिंदी का तुलनात्मक भाषाशास्त्रीय अध्ययन और सुविधाओं को उपलब्ध करवाना।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 351 के दिशा-निर्देशों के अनुसार हिंदी भाषा के अखिल भारतीय स्वरूप का विकास कराना और दिशा-निर्देशों के अनुसार हिंदी को अखिल भारतीय भाषा के रूप में विकसित करने के लिए कार्य करना।
- हिंदीतर क्षेत्रों के हिंदी अध्यापकों के लिए शिक्षण-प्रशिक्षण ।
- हिंदीतर क्षेत्रों के हिंदी अध्यापकों के लिए पत्राचार द्वारा (दूरस्थ) शिक्षण-प्रशिक्षण ।
- विदेशी छात्रों के लिए द्वितीय एवं विदेशी भाषा के रूप में हिंदी शिक्षण ।
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी का प्रचार-प्रसार ।
- सांध्यकालीन परास्नातकोत्तर अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान, जनसंचार एवं हिंदी पत्रकारिता और अनुवाद विज्ञान पाठ्यक्रम।
- नवीकरण एवं पुनश्चर्या पाठ्यक्रम ।
- हिंदीतर क्षेत्रों में स्थित विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों के सेवारत हिंदी अध्यापकों के लिए नवीकरण, उच्च नवीकरण एवं
- पुनश्चर्या पाठ्यक्रम ।
- केंद्र/राज्य सरकार के तथा बैंकों आदि के अधिकारियों/कर्मचारियों के लिए नवीकरण, संवर्धनात्मक, कौशलपरक कार्यक्रम और कार्यालयीन हिंदी प्रशिक्षण पाठ्यक्रम।
- भाषा प्रयोगशाला एवं दृश्य – श्रव्य उपकरणों के माध्यम से हिंदी के उच्चारण का सुधारात्मक अभ्यास ।
- कंप्यूटर साधित हिंदी भाषा शिक्षण ।
- संगोष्ठी, कार्यगोष्ठी, विशेष व्याख्यान, प्रसार व्याख्यान माला आदि का आयोजन ।
- संस्थान द्वारा प्रणीत, संपादित एवं संकलित पाठ्य सामग्री, आलेख, पाठ्य पुस्तकों आदि का प्रकाशन ।
- मुख्यालय में विदेशी विद्यार्थियों रंगोली की सज्जा, केंद्रीय हिंदी संस्थान
- हिंदी भाषा, अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान, तुलनात्मक साहित्य आदि से संबंधित शोधपूर्ण पुस्तक, पत्रिका का प्रकाशन ।
- हिंदी भाषा तथा साहित्य का अध्ययन – अध्यापन तथा अनुसंधान में सहायतार्थ समृद्ध पुस्तकालय ।
- हिंदी के प्रोत्साहन के लिए अखिल भारतीय प्रतियोगिताएँ।
- हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार, शैक्षिक अनुसंधान, जनसंचार, विज्ञान आदि क्षेत्रों में कार्यरत हिंदी विद्वानों के लिए हिंदी सेवियों का सम्मान।
- समय – समय पर भारत सरकार द्वारा सौंपी जाने वाली हिंदी संबंधी परियोजनाएँ तथा राजभाषा विषयक अन्य कार्य।
केंद्रीय हिंदी संस्थान हिंदी अध्ययन-अध्यापन और अनुसंधान का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। संस्थान को उच्च स्तरीय शैक्षिक संस्थान के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, अपितु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी मान्यता प्राप्त है। हिंदी भारत की सामासिक संस्कृति की संवाहिका के रूप में अपनी सार्थक भूमिका निभा सके, इस उद्देश्य एवं संकल्प के साथ संस्थान निरंतर कार्यरत है। अखिल भारतीय स्तर पर हिंदी को संपर्क भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए भी संस्थान अथक प्रयास कर रहा है। संस्थान का मूलभूत उद्देश्य है कि भारतीय भाषाएँ एक दूसरे के निकट आएँ और सामान्य बोधगम्यता की दृष्टि से हिंदी इनके बीच सेतु का कार्य करे तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय चेतना, संस्कृति एवं उससे संबद्ध मूल तत्व हिंदी के माध्यम से प्रसारित ही न हों, बल्कि सुग्राह्य भी बनें।